• सीमा पर कुश्ती, कारोबार में दोस्ती

    साइबेरियन कोल एनर्जी कंपनी (एसयूइके) रूस की वृहदाकार कोयला सप्लाई कंपनी है

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    - पुष्परंजन

    चीन का इलाज यही है कि भारत अपनी सीमाओं पर सड़क से लेकर अधोसंरचना तक मज़बूत करे। वहां उद्योग लगाये। दुनिया के जिन मुख्तलिफ़ इलाक़ों से चीन ऊर्जा जुटा रहा है, उन इलाक़ों की इंफ्रा प्रोजेक्ट में हाथ डाल रहा है, भारत वहां उससे प्रतिस्पर्धा करे।

    साइबेरियन कोल एनर्जी कंपनी (एसयूइके) रूस की वृहदाकार कोयला सप्लाई कंपनी है। भारत से जो भी डील होती है, 'एसयूइके' का दुबई कार्यालय सबकुछ देखता है। इसके माध्यम से भारतीय सीमेंट कंपनी अल्ट्राटेक ने इस साल 1 लाख 57000 टन कोयले का आयात रूस से किया था। रूस पर प्रतिबंध आयद होने की वजह से मामला पेमेंट का फंसा पड़ा था। जून 2022 में 25. 81 मिलीयन डॉलर का पेंमेंट अंतत: चीनी मुद्रा युआन में किया गया। ज़ाहिर है, इतना बड़ा पेमेंट बिना भारतीय रिजर्व बैंक के संज्ञान व सहमति के बिना संभव नहीं था।

    2021 का एक दूसरा उदाहरण दे रहा हूं। रूस में निजी क्षेत्र का जाना-माना ग्राज़प्रोमबैंक और यूको बैंक के वोस्त्रो अकाउंट्स के बीच पेमेंट को लेकर दिक्क़तें दरपेश हो रही थीं। उन्हीं दिनों भारतीय रिज़र्व बैंक ने क्रास करेंसी के रूप में युआन को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया था। चुनांचे चीनी करेंसी में पेमेंट के बाद, यह मामला सुलझा। अब भारत सरकार स्पष्ट करे कि रूस समेत दूसरे देशों से आयात के वास्ते पेमेंट में रनमिनपी (युआन) का हम कितना इस्तेमाल कर रहे हैं? मैंने केवल दो उदाहरण दिये। दुबई, सिंगापुर के बज़रिये ऐसे दर्जनों पेंमेंट हैं, जो 'रूपी-डॉलर-रनमिनपी-रूबल' के माध्यम से माज़ी में किये गये हैं। यह दीगर है कि युआन भी विनिमय की दृष्टि से डॉलर की तरह रुपये के मुक़ाबले महंगा होता गया है।

    मिनिस्ट्री ऑफ कारपोरेट अफेयर्स के डाटा यदि आप एक्सेस कर सकते हैं, तो 2022 में भारत में सक्रिय चीनी कं पनियों की सूचनाएं आपको मिल जाएंगी। द कॉरपोरेट डाटा मैनेजमेंट (सीडीएम) एक पोर्टल है, जिसे भारत सरकार के कारपोरेट कार्य मंत्रालय (एमसीए) ने डेवलप किया है। इस पोर्टल में चीन की 3 हज़ार 560 कंपनियां दिसंबर 2022 तक भारत में कार्यरत दिख रही हैं, जिनके डायरेक्टर्स एक्टिव हैं। लोकसभा में मिनिस्ट्री ऑफ कारपोरेट अफेयर्स के राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने जानकारी दी थी कि 174 चीनी कंपनियां सरकार के यहां रजिस्टर्ड है। अब सरकार ही यह गणित समझा सकती है, मंत्रालय के पोर्टल में 3 हज़ार 560 कंपनियां दिखती हैं, मंत्री बयान देते हैं कि केवल 174 चीनी कंपनियां भारत में रजिस्टर्ड हैं। सरकार यह भी ऑन द रिकार्ड बता दें, कि देश की किन-किन पार्टियों ने चीनी कंपनियों से कब, और कितना अनुदान लिया है? दूध का दूध और पानी का पानी होना भी ज़रूरी है।

    एक तरफ़ आप 'स्वदेशी-स्वदेशी' का जाप करते हो, मेक इन इंडिया का बाघ आपके प्रतीक चिह्न में गरजता दिखता है, मगर जब चीनी कंपनियों की सूची देखिये, तो सच तो कुछ और है। सभाओं में 'चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करो' का गगनभेदी नारा लगाएंगे। दीवारों पर इसके हवाले से पोस्टर चिपकायेंगे। मगर, पटेल से लेकर गणेशजी की मूर्ति, लड़ियां और पटाखे, सॉफ्टवेयर से लेकर हार्डवेयर तक चीन से मंगाना बंद नहीं करेंगे। 2014-15 में चीन-भारत का उभयपक्षीय व्यापार 48 अरब डॉलर का था, 2021 से मार्च 22 तक यह 125.66 अरब डॉलर का हो गया। चीनी वस्तुओं का बहिष्कार यदि सचमुच होता, तो दोतरफा व्यापार तीन गुणा कैसे बढ़ गया? अर्थात, गधे के बिना धोबी का गुज़ारा नहीं, और धोबी के बिना गधे का गुज़ारा नहीं। टीवी पर घुड़की दीजिए, पर्दे के पीछे व्यापार करते रहिए। आठ वर्षों में भारत की चीन नीति का लब्बोलुआब यही है।

    सीमा पर जब भी झड़प होती है, इधर से बयानबाज़ी में एक शब्दावली का इस्तेमाल अवश्य होता है, 'यह 1962 का भारत नहीं है।' आप ऊपरी लद्दाख से लेकर 4057 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा 'एलएसी' के किसी हिस्से पर जाकर सड़कों का हाल देख आइये। पश्चिमी क्षेत्र में लद्दाख-कश्मीर, मध्य में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश, पूर्वी क्षेत्र में सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश, ये सूबे हैं वास्तविक नियंत्रण रेखा 'एलएसी' से लगे। इन इलाक़ों में कहीं-कहीं सौ किलोमीटर के स$फर में आठ से दस घंटे लग जाते हैं।

    वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सड़कें कितनी बनी हैं? केंद्र सरकार का ही आंकड़ा लेते हैं। राज्यसभा में जूनियर डिफेंस मिनिस्टर अजय भट्ट ने 25 जुलाई, 2022 को जानकारी दी थी कि चीन से लगी सीमा पर 2,089 किलोमीटर सड़कें हमने बना ली हैं। यानी, आज़ादी के अमृतकाल तक चीन से लगी सड़कें आधी ही बन पाई हैं। जब सड़कें और अधोसंरचना आधी-अधूरी हैं, तो 1962 में ही हैं हम लोग। चीन ने अपने हिस्से को कितना डेवलप किया है, और युद्ध की स्थिति में रक्षा सामग्री से लेकर रसद सप्लाई तक का कितना अत्याधुनिक इंतज़ाम किया है, वह दिल्ली में बैठे लोगों के लिए परीकथा की तरह है।

    12 जनवरी, 2018 को रॉयटर ने ख़बर दी थी कि इसरो की मदद से अंतरिक्ष में 100 सेटेलाइट भारत ने प्रक्षेपित किये हैं। 31 नैनो और माइक्रो सेटेलाइट में से आधे से अमेरिका, कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, दक्षिण कोरिया इस्तेमाल करेंगे, शेष से भारतीय सीमाओं की चौकसी होगी। इसरो ने 'पीएसएलवी सी-40' और कार्टोस्टैट-टू को 'आई इन द स्काई' नाम दिया था। सरकार सुनिश्चित थी कि उपग्रहों के ज़रिये हाई रेज़ोल्यूशन वाले इमेज से हम भारतीय सीमा की एक-एक हलचलों को देख पायेंगे। बावजू़द इसके, 5 मई, 2020 को गलवान हो जाता है। गोगरा हॉटस्प्रिंग, छांग-चेनमो नदी और पेंगोग झील तक चीनी सैनिक घुसपैठ करते हैं, तो सेटेलाइट सर्विलांस सिस्टम पर सवाल उठेंगे ही।

    सरकार ही बताती है कि सीमा पर चौकसी मल्टीलेयर्ड है। बैटलफील्ड सर्विलांस रडार (बीएफएसआर) जीपीएस से लेकर थर्मल एंड डे कैमरा, एलआरएफ जैसे कई तरह के उपकरण एक्टिव हैं। सीमा पर पांच स्तरीय चौकसी में इलेक्ट्रॉनिक मानिटरिंग, फिक्स्ड सर्विलांस, स्टेशनरी टेक्निकल सर्विलांस, थ्री पर्सन सर्विलांस और अंडरकवर ऑपरेशंस को रेखांकित किया जाता है। फि र भी सीमा पर हथियार, नारकोटिक्स और पशुओं की तस्करी पर पाबंदी नहीं लग पाई। आख़िर क्या कमियां रह गईं, जिससे हमें सीमा पर समय से पहले चेतावनी नहीं मिल पाती? बेहतर जवाब तो देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ही दे सकते हैं।

    चीन से हमें जहां प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए, उस इला$के में हम चादर तानकर सोये हुए हैं। चीनी जिस तेज़ी से अपनी ऊर्जा नीति पर काम कर रहा है, भारत उससे मीलों दूर है। गुज़िश्ता बुधवार को चीन और सऊदी अरब के बीच 29.26 अरब डॉलर के उभयपक्षीय समझौते हुए हैं, उसमें ऊर्जा सहयोग सर्वोपरि है। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज बिन सलमान ने कहा कि चीन विश्व का सबसे बड़ा एनर्जी कंज्यूमर है, और हमारा देश टॉप ऑयल एक्सपोर्टर है, दोनों मिलकर विश्व भर में तेल बाज़ार को संतुलित करेंगे। सऊदी ऊर्जा मंत्री के कहे इन शब्दों के निहितार्थ, न सिफ़र् अमेरिका, बल्कि रूस भी ढूंढने का प्रयास करेगा। चीन, रियाद की बैठक में यह भी चुग्गा छोड़ गया कि शंघाई कॉरपोरेशन आर्गेनाइजेशन और ब्रिक्स का विस्तार करेंगे, जिसमें इच्छुक अरब देश सदस्य बन सकेंगे।

    अमेरिकी लॉबी का प्रमुख देश सऊदी अरब एक नये समीकरण के साथ चीन से बगलगीर है, जिसमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, संयुक्त अरब अमीरात के नेताओं का साथ है। रियाद में चीन-खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) की बैठक में इन देशों सभी शिखर नेता शी के नये रोडमैप से सहमत थे। इस रोडमैप में ऊर्जा, वित्तीय निवेश, एयरोस्पेस, अधोसंरचना, नई तकनीक को रेखांकित किया गया है। शी ने प्रस्ताव दिया है कि अगले तीन से पांच वर्षों तक इन पांच क्षेत्रों में सहयोग को हम सब मिलकर साकार करेंगे।

    'जीसीसी' उस इलाक़े का अंतरसरकारी आर्थिक संगठन है, जिसमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। शी ने कहा कि आने वाले दिनों में जीसीसी देशों से चीन कच्चा तेल और लिक्विफाइड नेचुरल गैस का आयात बढ़ाएगा। खाड़ी देशों से यह कारोबार चीनी मुद्रा रनमिनपी (युआन) में हुआ करेगी। मतलब साफ है कि इस इलाके में डॉलर के विकल्प के रूप में युआन को स्वीकार करा लेना राष्ट्रपति शी का एक बड़ा लक्ष्य था।

    2022 में चीनी राष्ट्रपति शी दूसरी बाद सऊदी अरब गये। इससे पहले 2016 में जब शी चिनफिंग रियाद आये, तब कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे। उनमें से नियोम प्रोजेक्ट सबसे महत्वाकांक्षी माना गया था। इस परियोजना के तहत उत्तर-पश्चिम सऊदी शहर ताबुक को यूरोप व अफ्रीक़ा से सड़क मार्ग के ज़रिये जोड़ना था। ताबुक में सऊदी अरब का सबसे वृहदाकार एयरबेस है। नियोम प्रोजेक्ट से चीनी कंपनियों के वारे-न्यारे हुए। इसके प्रकारांतर जिज़ान क्षेत्र में कई चीनी कंपनियां अधोसंरचना व ऊर्जा के क्षेत्र में कमाई के वास्ते उतर आईं।

    चीन की आर्थिक गतिविधियां सिफ़र् सऊदी अरब तक सीमित नहीं रहीं। 'चाइना-इजिप्ट टेडा स्वेज इकोनॉमी ट्रेड कोऑपरेशन ज़ोन', 'चाइना-ओमान इंडट्रीयल पार्क', 'चाइना-यूएई इंडट्रीयल कैपासिटी कोऑपरेशन डेमोंस्ट्रेशन पार्क' जैसे चंद उदाहरण हैं। 2021 में चीन ने अरब देशों से 'स्पेस एंड सेटेलाइट नेवीगेशन प्लान' पर हस्ताक्षर किये थे। इन सारी परियोजनाओं को साकार करने में सऊदी अरब की सबसे बड़ी भूमिका रही थी। हम खाड़ी के देशों में वैसा कुछ क्यों नहीं कर रहे, जैसा चीन कर रहा है? हमारे विदेशमंत्री यूएन में बयान अधजल गगरी बने हुए हैं कि एक तीर से पाकिस्तान और चीन दोनों को छलनी कर दिया।

    भारत, खाड़ी देशों से तेल व गैस का आयात करता रहा है, युआन की तरह यहां के करेंसी बास्केट में भारतीय रुपये का प्रवेश क्यों नहीं होना चाहिए? 2021-22 में भारत से गल्फ देशों का व्यापार 154.73 अरब डॉलर का रहा है। 2021-22 में जीसीसी देशों से भारत ने 48 अरब डॉलर का कच्चा तेल और एलएनजी-एलपीजी 21 अरब डॉलर का आयात किया था। मगर पेमेंट हुआ है डॉलर में। ईरान केवल अपवाद है, जो जीईसी से बाहर का मुल्क है। चीन का इलाज यही है कि भारत अपनी सीमाओं पर सड़क से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक मज़बूत करे। वहां उद्योग लगाये। दुनिया के जिन मुख्तलिफ़ इलाक़ों से चीन ऊर्जा जुटा रहा है, इंफ्रा प्रोजेक्ट में हाथ डाल रहा है, भारत वहां उससे प्रतिस्पर्धा करे।

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